स्त्री प्रकृति के प्रत्येक अंश में परमात्मा की झलक पाती है। हरि प्रिया मिट्ठू
जे पी शर्मा
जयपुर समालखा। भारतीय संस्कृति में स्त्री प्रकृति के कण-कण को अपने प्रेम का साक्षी मानती है। प्रकृति के प्रत्येक अंश में परमात्मा की झलक पाती है और उससे अपने सुहाग रक्षा की प्रार्थना करती है। गंगा, सूर्य, चंद्रमा जीव जंतु या वट वृक्ष सब उसके लिए अक्षय सुहाग देने वाले हैं। यह बाते हरि प्रिया मिट्ठू ने वट सावित्री व्रत पूजा के दौरान कही जैसा विदित है सोमवार को सोमवती अमावस्या के शुभ संयोग में वट सावित्री व्रत की पूजा हो रही है। पति की लम्बी आयु के लिये सुहागिन महिलाएं सोलह शृंगार में सज-धज कर वट सावित्री व्रत में जुटी है। वट वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ रहने की प्रार्थना कर रहीं हैं। साथ ही उन्होंने कहा शास्त्रों में वर्णित है की प्रकृति पूजन परंपरा अति प्राचीन है और मूर्ति पूजा बाद में आरंभ हुई। उन्होंने वट वृक्ष की पूजा, परिक्रमा और वट सावित्री व्रत परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा वट वृक्ष की धार्मिक मान्यताएं भी हैं। इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं। जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शिव का निवास होता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया है। वट वृक्ष की छांव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियां अचल सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन वरगद के वृक्षों की पूजा करती हैं।