*खुश रहना बहुत कठिन तो नहीं*अकेला महाराज
सुभाष तिवारी लखनऊ
एक संत ने गुरु से पूछा गुरुदेव हमेशा खुश रहने का नुस्खा अगर हो तो दीजिए
गुरु बोले बिल्कुल है आज तुमको वह राज बताता हूँ
गुरु उस संत को अपने साथ सैर पर ले गये ओर उस से अच्छी अच्छी बातें करते रहे,संत बड़ा आनंदित था
एक स्थान पर ठहर कर गुरु ने उस संत को एक बड़ा पत्थर देकर कहा इसे उठाए उठाये मेरे साथ चलो
पत्थर को उठाकर वह संत गुरु के साथ-साथ चलने लगा।
कुछ समय तक तो आराम से चला लेकिन थोड़ी देर में हाथ में दर्द होने लगा, पर दर्द सहन करता चुपचाप चलता रहा।
गुरु पहले की तरह मधुर उपदेश देते चल रहे थे पर संत का धैर्य जवाब दे गया
संत ने कहा गुरूजी आपके प्रवचन मुझे प्रिय नहीं लग रहे अब,मेरा हाथ दर्द से फटा जा रहा है
गुरु से पत्थर नीचे रखने का संकेत मिला तो उस युवक ने पत्थर को फेंका और आनंद में भरकर गहरी साँसे लेने लगा
गुरु ने कहा यही है खुश रहने का राज़, मेरे प्रवचन तुम्हें तभी तक आनंदित करते रहे जब तक तुम बोझ से मुक्त थे,परंतु पत्थर के बोझ ने उस आनंद को छीन लिया
जैसे पत्थर को ज़्यादा देर उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह हम दुखों या किसी की कही कड़वी बात के बोझ को जितनी देर तक उठाये रखेंगे उतना ही दुःख होगा
अगर खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं